

इस गोल घूमती दुनिया का इक अदना क़िरदार मैं भी हूँ।
थोड़े गुनहगार तुम भी हो और थोड़ा गुनहगार मैं भी हूँ।
कितने सालों से ये धरती ज़िन्दगी को पहचानती है, पहचानती फ़ितरत को और भोर कब होगी ये जानती है। ग़ुमनाम तो नहीं मैं, कम से कम ये धरती मुझे जानती है।
कुछ स्याही के कतरों को, एक लड़के ने पोंछ दिया कागज़ पे, बचपना था उसका पर वो कुछ कतरे शब्दों की शक्ल लेने लगे। लड़का छोटा था मज़ा आने लगा उसे। उन कुछ कतरों को कुछ और कतरों से जोड़ने में। समय का बोझ भारी था वो कतरे गुमशुदा हो गये, दिल के किसी कोने में छुप के बैठ गये। असमंजस भारी था। वक़्त अठखेलियाँ करता था अपनी स्याही से, और वो लड़का उनको जमां करता रहा दिल के उसी कोने में। परेशान भागता लड़का समय के साथ चलने में, रिश्तों को बनाने में और उनको निभाने में। पर वक़्त तो बेवफ़ा ठहरा, कहाँ उसके लिये रुकता वैसा ही हाल कुछ रिश्तों का भी ठहरा।
वो रोया बहुत ही देर तक फिर थोड़ा चिल्लाया भी, सारे कमरे में वक़्त के टुकड़े छील कर फेंक दिये उसने। उस बंद कमरे में उस रोज़ उसने सारी गिरहें फिर खोली और सभी नाकारा चीज़ों को उठा के बाहर कर डाला। समय को झाड़ू के जैसा लिये, सारे छिलके डस्टबिन में डाले। वापस से निकाला गुमशुदा कतरों को दिल के कोने से, फ़िर से जोड़ने लगा उन कतरों को कतरों से। मैं वही हूँ "तेजस" नाम है मेरा। उन्हीं कतरों को आपके सामने परोसा है उम्मीद है पसन्द आएगा।