वो औरत

मैंने देखा है उसे पतंग सा उड़ते हुए
उसके भोलेपन से हवा को भी महकते हुए
मैंने देखा है उसे भौरों की तरह घर में गुनगुनाते हुए
थोड़ी-थोड़ी बन्दिशों में थोड़ा-थोड़ा घबराते हुए
ज़िन्दगी की कड़वाहट को शिव के जैसे उसे भी गटकते देखा है

मैंने देखा है उसके सपनो को बरसते हुए
चूल्हे में रोज़ मौन उसको थोड़ा जलते हुए
लोगों की नज़रों से उसे देखा है तिलमिलाते हुए
और पल-पल उन घुटते एहसासों से लड़ते हुए
ज़िन्दगी की ज़हरीली आँखों को मीरा के जैसे निगलते देखा है

मैंने देखा है उसे रिश्तों को सिलते हुए
लोगों की खुशियों में उसे भी खुश होते हुए
और इन सारी कहानियों में उसे आगे बढ़ते हुए
जीतते देखा है और सपनो को सच भी करते हुए
लोगों की छोटी सोचों से गाँधी के जैसे लड़ते देखा है

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