खत

आज बहस नहीं करनी तुमसे, ना झगड़ा करना है। चलो मान ली तुम्हारी सारी बातें। मान लिया खुदा ने धरती सात दिनों में बनायी थी, मान लिया कि पहले आदम ही धरती पे आया था। मान लिया की पूजा करने से शान्ति मिलती है। मान लिया रामायण नावेल नहीं है भगवान की गाथा है। मान लिया मन्दिर वहीं बनायेंगे, जो बोलोगे सब मान लूँगी आज।

तुमसे लड़ूंगी भी नहीं चाहे गीला टॉवल बेड पे रख दो। मना नहीं करूँगी गर बरसात में चपचप करता जूता भी कालीन पे लेके चढ़ जाओ। या अजीब-बेतरतीब कपडे पहन के साथ चलो। मन्दिर भी जाऊँगी आज से कहोगे तो हर रोज़। भरोसा रखो जो कह रहीं हूँ सब करूँगी।

तुम्हारे ख़र्राटों में भी सोने की आदत डाल लूंगी मैं। और जो सौतन है ना मेरी “तुम्हारा लैपटॉप” उसको भी जैसे तैसे सह लूँगी। तुम गिरा देना बाथरूम में पानी मैं वाइपर चला दूंगी नहीं कहूँगी तुमसे। खाना भी रोज़ तुम्हारे पसन्द का। टीवी पर सिर्फ़ न्यूज़ चैनल मैं खुद लगा दूंगी बोलो क्या कहते हो। सब तुम्हारी मन मर्ज़ी अब तो मान जाओ।

चलो सारी गलतियाँ भी मेरी। तुम जब भी जाओगे ना धर्म के नाम पे नेताओं की लाइन में, मैं तिलक लगा के भेजूँगी। मैं चलूँगी तुम्हारे साथ मन्दिर बनवाने भी, एक लट्ठ मेरे लिए भी ला देना। और कोई विजातीय मिल गया तो लट्ठ बजा भी दूंगी। माना की हिन्दुत्व ही धर्म बाकियों को इस देश में रहने का अधिकार नहीं। जो बोलो तुम सब सही।

बस एक बार इस सैय्या से उठ जाओ, देखो थक गयीं हूँ रो-रो कर अब आँखों से रेत भी नहीं बहती। उठ जाओ ना, या उठो और दो मेरे सवालों का जवाब। हिन्दू तुम भी हिन्दू मैं भी फिर किस मर्यादा की खातिर बली मेरे प्यार की चढ़ गयी, कहाँ था वो भगवान और कहाँ थे धर्म के ठेकेदार जब हमको प्यार करने की सजा मिली। जिनके साथ तुम कन्धा मिलाके आगे बढे, उन्होंने ही हमारी कुर्बानी ले ली, और जिसका नाम लेके आगे बढे उस भगवान ने पलट के देखा भी नहीं।

नहीं जागोगे ना तो फिर ठीक है, मैं भी सो जाती हूँ। तुम्हारी अंतहीन नींद में।

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