दो किताबें (Do Kitabein)

A Hindi short story of a boy and books in his library, friendship and their unimaginable love.
मेरे घर में एक छोटी सी लाइब्रेरी है, बाबा ने बहुत सजा के रखा है। छोटे छोटे पार्टिशन्स (partitions) हैं उसमें, जिसमें अलग अलग सेक्शन (section) में अलग अलग किताबें रखी हैं। एक सेक्शन गुलज़ार साहब की किताबों से भरा है तो दूसरा पाउलो कोएलो (Paulo coelho) की किताबों से। बड़ीविविधताहैउनमें।
एक दिन घर में अकेला था मैं, मुझे लाइब्रेरी से कुछ फुसफुसाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। डर लगने लगा था तो सोचा अपने कमरे में ही रहता नहीं जाता उधर। दरवाज़ा बंद किया और बैठ गया बेद पे। पर दिमाग से डर नहीं जा रहा था। खुदसेबातेंहोनेलगींफिर।
“कोई घुस गया है घर में “
“नहीं नहीं कैसे कोई घुस सकता है, दरवाज़ा तो हर जगह से बंद है, और कुछ पे तो ताले लगे हैं“
“अरे बुद्धू ताले और दरवाज़े इसलिए होते हैं कि शरीफ लोग चोर न बन जाएँ, जो चोर ही है उसको ये नहीं रोक सकते“
“हम्म्म, फिर क्या करूँ?”
“जाके देख लेता हूँ“
डरते डरते मैं उठा, अपने कमरे का दरवाज़ा खोला, बाहर झाँका और लाइब्रेरी की तरफ क़दम बढ़ाया। पैर जड़वत हो गए, क्योंकिदिमागकेएककोनेमेंदस्तकहुईथी
“वहाँ भूत हुआ तो “
360 डिग्री का टर्न लिया मैंने और दरवाज़ा बंद कर दिया। साँसें धौंकनी की तरह चलने लगीं, गला सूखने लगा। मैं अपने कमरें में वाटर बाटल भर के रखता हूँ, बारबारकौनलाएगापानी।मैंनेबाटलकीतरफ़हाँथबढ़ाया।दिनख़राबथामेरावोभीखालीथा।
“यार सच में भूत हुआ तो मेरे कमरें में आ जायेगा, फिर क्या करूँगा मैं“
“ऐसा तो नहीं कि एक से ज्यादा हैं, तभी तो बातें कर रहे“
“नहीं नहीं मैं भी तो खुद से बात कर रहा “
“लेकिन मैं तो डर रहा इसलिये खुद से बात कर रहा “
“वो मुझे डराने कि सोच रहा इसलिए खुद से बात कर रहा “
डर का प्रकोप उस दिन फील हुआ मुझको। अब तो पेट भी मरोड़ने लगा था। अब तो बाहर जाना ही होगा। मरता क्या न करता। बिना किसी आवाज़ के मैंने फिर से दरवाज़ा खोला। कुछ कदम आगे बढ़ाये तो हिम्मत बढ़ गयी थोड़ी। सोचा सुनता हूँ की क्या बात चल रही है, लाइब्रेरीमें।कानलगायालाइब्रेरीकेदरवाज़ेपर।
“ऊँची इमारतों से मकान मेरा घिर गया, कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गए। काफ़ी सैड टाइप के नहीं हो तुम“
“मैं सच हूँ जो आजकल होता है तुम्हारे जैसा नहीं, सपनो का सौदागर Mr. THE ALCHEMIST”
“मेरा नाम तो पढ़ लिया तुमने अपना भी बता दो “
“तरकश नाम है मेरा और जावेद साहब ने लिखा है मुझे “
“हाँ नाम लिखा है पीछे, पर जो भी हो थोड़ा सैड टाइप के तो हो तुम। देखो न तुम्हारा रंग भी गहरा काला है“
“माना तुम्हारा रंग उजला है, पर ज़माना बदल गया है रेसिस्ट जैसी बातें मत करो। और ड्रीमी हो अच्छा है चिढ़ाओ मत मुझे“
“मैं ड्रीमी नहीं हूँ “
“बड़ा बड़ा लिखा है A fable about following your dream, और ड्रीमी नहीं हुँह“
फिरहंसनेलगेदोनों।
“वैसे लोग तुमको काफी पसंद करते होंगे ना” तरकशनेकहा
“क्यों “
“इंगलिश में जो हो“
“हाँ करते तो हैं पर वज़ह इंगलिश है या नहीं ये नहीं पता, क्योंकि ओरिजनली तो मुझे portuguese में लिखा था कोएलो साहब ने“
“ओह, अच्छा ये बताओ तुम कब आये यहाँ इस घर में “
“एक साल हो गए वो लड़का है न तेजस वही लाया था, और तुम “
“मुझे भी लगभग एक साल उसके बाबा लाये थे “
“बताओ हम दोनों एक ही रूम में हैं सालों से और बातें नहीं की “
“अच्छा है बेवकूफ ने कल पढ़ के मुझे इंगलिश किताबों के खाने में रख दिया “
“अरे बेवकूफ क्यों “
“बेवकूफ ही है, जब भी पढता है पेज मोड़ देता है दर्द होता है मुझे समझता ही नहीं। ऐसा लगता है कान पकड़ के घुमा दिया हो किसी ने“
मैं बाहर खड़ा हंसने लगा दोनों की बातें सुन के, और तभी ऐसा लगा कि मेरा कान पकड़ के घुमा दिया हो किसी ने। आँख खुल गयी सपने से बहार आ गया था। मम्मी सामने खड़ी थी।
“दस बज गए, उठो अब“
मैं अभी भी हंस रहा था हिंदी और इंगलिश की दोस्ती पर, मम्मी थोड़ा परेशान थीं कि कान पकड़ के घुमाने के बाद भी ये हंस रहा।मैं भाग के लाइब्रेरी में आया दोनों किताबें उठायीं उनको किस किया और एक साथ रख दिया।
मैं अभी भी हंस रहा था हिंदी और इंगलिश की दोस्ती पर
Saumtriya Guha
Heart warming writing….
Tejas
Thankyou Sir