कुछ तेरे लफ्ज़
कुछ तेरे लफ्ज़ कुछ अलग सा ही रिश्ता है मेरा तुमसे। कितना तुममे हूँ मैं और कितना मुझमें तुम, फर्क मुश्किल है। कुछ तेरे लफ्ज़
कुछ तेरे लफ्ज़ कुछ अलग सा ही रिश्ता है मेरा तुमसे। कितना तुममे हूँ मैं और कितना मुझमें तुम, फर्क मुश्किल है। कुछ तेरे लफ्ज़
तेरे साँसों में उलझना और हौले-हौले से मचलना। मन खिला-खिला सा रहता है तेरी बाहों में सिमट के। कभी तू मेरे जैसा है कभी मेरी
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