छोटी सी बात

कैसे छोटी सी बात पे उस दिन लड़ पड़े थे हम और कनखियों से बुन रहे थे प्यार के किस्से जो आँखें दोस्ती का हाँथ थामे आगे बढ़ती थीं तो शक्लें यूँ बनाते थे के जैसे जानते न हों बड़ी कोशिश की चेहरे ने तुम्हें गुस्सा दिखाने की फ़क़त ये सोच में बैठे की खुद से रुसवाई करें कैसे तेरे आँखों के आईने मेँ तो हम ही रहते हैं कैसे छोटी सी बात पे उस दिन लड़ पड़े थे हम

Hindi Poetry/Quotes/Status

तुमसे नाराज़ होने और खुद से नाराज़ होने में फ़र्क ही नहीं, कैसी छोटी सी बात पे उस दिन लड़ पड़े थे हम।

In Hindi

कैसे छोटी सी बात पे उस दिन लड़ पड़े थे हम
और कनखियों से बुन रहे थे प्यार के किस्से
जो आँखें दोस्ती का हाँथ थामे आगे बढ़ती थीं
तो शक्लें यूँ बनाते थे के जैसे जानते न हों
बड़ी कोशिश की चेहरे ने तुम्हें गुस्सा दिखाने की
फ़क़त ये सोच में बैठे की खुद से रुसवाई करें कैसे
तेरे आँखों के आईने मे तो हम ही रहते हैं
कैसे छोटी सी बात पे उस दिन लड़ पड़े थे हम

In English

Kaise choti si baat pe us din lad pade the hum
Aur kankhiyon se bun rahe the pyar ke kisse
Jo aankhen dosti ka haanth thame aage badhti thi
To shaklein yun banate the ke jaise jante na hon
Badi koshish ki chehre ne tumhein gussa dikhane ki
Fakat ye soch mein baithe ki khud se ruswai karein kaise
Tere aankhon ke aaine mein to hum hi rehte hain
Kaise choti si baat pe us din lad pade the hum

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1 Comment

  • Dr.Balaram Parmar Reply

    क्या बचपन था हर खेल में लड़ते थे चार बार ।
    लड़ते थे चार बार, गले भी मिलते थे कई बार ।।
    कभी लडाई गुल्ली डंडा की तो कभी कंचै पर ।
    कभी खाने की तो कभी दोस्ती की आंच पर ।।
    छोटे थे तो लडाई भी होती थी बालू की लकीर ।
    जितने जल्दी लड़ते थे उतने ही दोस्ती के अधीर।।
    डॉ बालाराम परमार ‘हंसमुख ‘

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